
शरद पूर्णिमा का हिंदू धर्म में बहुत अधिक महत्व माना जाता है। पूजा-अनुष्ठान के लिए यह दिन सर्वश्रेष्ठ है। कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा अपनी पूरी 16 कलाओं के प्रदर्शन करते हुए दिखाई देता है। शरद पूर्णिमा से जुड़ी मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणों से अमृत टपकता है, जो सेहत के लिए बहुत ही लाभकारी होता है।
शरद पूर्णिमा के दिन लोग अपने घरों की छत में खीर बना कर रखते हैं। जिससे चांद की किरणें खीर पर पड़े और वह अमृतमयी हो जाए। माना जाता है कि इसको खाने से बड़ी-बड़ी बीमारियों से निजात मिल जाता है। यही कारण है कि शरद पूर्णिमा की रात रावण विशेष साधना करता था।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, रावण शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा की किरणों को दर्पण की सहायता से अपनी नाभि पर ग्रहण करता था। रावण की नाभि में अमृत था और वह इस अमृत की वृद्धि के लिए पूर्णिमा की रात्रि को दर्पण लगाकर चंद्रमा की रोशनी को नाभि पर केंद्रित करता था। जिससे वह सदैव युवा रहता था। कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात 10 से मध्यरात्रि 12 बजे के बीच कम वस्त्रों में घूमने वाले व्यक्ति को ऊर्जा प्राप्त होती है।
शरद पूर्णिमा का चांद सेहत के लिए काफी फायदेमंद है। इसका चांदनी से पित्त, प्यास, और दाह दूर हो जाते हैं। दशहरे से शरद पूर्णिमा तक रोजाना रात में 15 से 20 मिनट तक चांदनी का सेवन करना चाहिए। यह काफी लाभदायक माना जाता है। साथ ही चांदनी रात में त्राटक करने से आंखों की रोशनी बढ़ती है।
धर्म ग्रंथों के अनुसार, शरद पूर्णिमा के दिन श्रीकृष्ण गोपियों के साथ रास लीला भी करते हैं। माना तो ये भी जाता है कि इस दिन मां लक्ष्मी रात के समय भ्रमण पर निकलती हैं और देखती हैं कि कौन जग रहा है और कौन सो रहा है। जो लोग जगकर पूजा-पाठ कर रहे होते हैं, उनके यहां मां ठहरती हैं।